*घट में बैठे भगवन कहते, मेरे धन के खोलो द्वार।*
*भारतवासी आओ सुनलो, मैं तो करूँ सभी से प्यार।।*
🔐🔐🔐🔐🔏🔐🔐🔐🔐
१.
जितने भी मंदिर मस्जिद में, दानी रुपयों की भरमार।
उसको लेलो अधिग्रहण में, हे! मेरी भारत सरकार।।
हित परहित के भाव जगाकर, मानव सेवा करलो आज।
नहीं बंद मंदिर में रहता, मानव घट में मेरा राज।।
हिन्द देश का कोई बच्चा, नहीं भूख की खाये मार।
*घट में बैठे भगवन कहते...........।*
२.
यदि दया है तेरे मन में, अंश वंश फिर मेरा है।
दान दिया जो तुमने मुझको, इस हालत में तेरा है।।
नर सेवा नारायण सेवा, इसी बात में पूरा सार।
करो प्यार तुम अब तो मुझसे, घट -घट बैठा पाँव पसार।।
करलो जल्दी मत घबराओ, मेरे मन की सुनो पुकार।।
*घट में बैठे भगवन कहते...........।*
३.
कौन आएगा तुम्हें जगाने, समझाने को ऐसा सार।
अब तो सुनलो घट की कर लो, देश पड़ा मेरा बीमार।
धर्म नाम पर जोड़े तुमने, ही मेरे घर में पैसे।
पूण्य हितों में ले लो इनको, दिया दान जैसे-तैसे।
ऐसे वक्त भी काम न आया, तो मंदिर मेरा धिक्कार।
*घट में बैठे भगवन कहते...........।*
४.
*अपने घर में बैठे- बैठे* अपने घट में बुन लो तुम।
हाथ स्वच्छ अरु नाक स्वच्छ मन भी पारस कर लो तुम।।
नित्य मारकर खाये जाते, उन जीवों की सुनो पुकार
नहीं सुनी थी अब तक उनकी, अपनी करनी खाओ मार।।
नहीं सताना अब जीवों को, बात यही घट लेना धार।।
*घट में बैठे भगवन कहते...........।*
रचनाकार🖊️
*कवि प्रजापति कैलाश 'सुमा'*
*भारतवासी आओ सुनलो, मैं तो करूँ सभी से प्यार।।*
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१.
जितने भी मंदिर मस्जिद में, दानी रुपयों की भरमार।
उसको लेलो अधिग्रहण में, हे! मेरी भारत सरकार।।
हित परहित के भाव जगाकर, मानव सेवा करलो आज।
नहीं बंद मंदिर में रहता, मानव घट में मेरा राज।।
हिन्द देश का कोई बच्चा, नहीं भूख की खाये मार।
*घट में बैठे भगवन कहते...........।*
२.
यदि दया है तेरे मन में, अंश वंश फिर मेरा है।
दान दिया जो तुमने मुझको, इस हालत में तेरा है।।
नर सेवा नारायण सेवा, इसी बात में पूरा सार।
करो प्यार तुम अब तो मुझसे, घट -घट बैठा पाँव पसार।।
करलो जल्दी मत घबराओ, मेरे मन की सुनो पुकार।।
*घट में बैठे भगवन कहते...........।*
३.
कौन आएगा तुम्हें जगाने, समझाने को ऐसा सार।
अब तो सुनलो घट की कर लो, देश पड़ा मेरा बीमार।
धर्म नाम पर जोड़े तुमने, ही मेरे घर में पैसे।
पूण्य हितों में ले लो इनको, दिया दान जैसे-तैसे।
ऐसे वक्त भी काम न आया, तो मंदिर मेरा धिक्कार।
*घट में बैठे भगवन कहते...........।*
४.
*अपने घर में बैठे- बैठे* अपने घट में बुन लो तुम।
हाथ स्वच्छ अरु नाक स्वच्छ मन भी पारस कर लो तुम।।
नित्य मारकर खाये जाते, उन जीवों की सुनो पुकार
नहीं सुनी थी अब तक उनकी, अपनी करनी खाओ मार।।
नहीं सताना अब जीवों को, बात यही घट लेना धार।।
*घट में बैठे भगवन कहते...........।*
रचनाकार🖊️
*कवि प्रजापति कैलाश 'सुमा'*